Startup:डिप्रेशन से उबरने लिए पहल; मंदिरों में चढ़ने वाले फूलों से मूर्ति बना रहीं पूनम, 80 हजार महीने की कमाई

डिप्रेशन से उबरने लिए पहल; मंदिरों में चढ़ने वाले फूलों से मूर्ति बना रहीं पूनम, 80 हजार महीने की कमाई

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कई लोग बदलाव की बड़ी- बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन जब बात बदलाव करने की होती है तो सच्चाई कुछ और ही होती है। गुरुग्राम की पूनम उन चुनिंदा लोगों में से हैं, जो न सिर्फ बदलाव के बारे में सोचती हैं, बल्कि उन्होंने उसे साकार भी कर दिखाया है। अपनी खराब मेंटल स्थिति से उबरने के लिए पूनम हर रोज मंदिर जाती थीं। मंदिर में चढ़ने वाले फूलों को कचरे में फेंकते हुए देखा, तो उन्हें दुख हुआ।

उन्होंने इन फूलों से खास तरह के बिजनेस ‘आरुही इंटरप्राइजेज’ की शुरुआत की। जिसके जरिए वो फूलों से भगवान की मूर्ति, धूपबत्ती और दीपक समेत 15 इको फ्रेंडली होम डेकोर प्रोडक्ट्स तैयार करती हैं।

जिसे वो स्टाॅल, मेला, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया के जरिए पूरे देश में सेल कर रही हैं। पूनम करीब 10 महिलाओं को रोजगार दे रही हैं, और हर महीने करीब 80 हजार रुपए भी कमा रही हैं। फूलों को इकट्ठा करने के लिए पूनम कई मंदिरों के साथ जुड़ी हैं। वह कई शहरों की महिलाओं को बेकार फूलों को रीसाइकल करने की ट्रेनिंग भी दे रही हैं।

आज की पॉजिटिव खबर में जानते हैं पूनम की हाउसवाइफ से सोशल इन्फ्लुएंसर बनने की कहानी ….

फूलों को कचरे में देख काफी तकलीफ हुई

पूनम सहरावत गुरुग्राम की रहने वाली हैं। उनके पति का खुद का कारोबार है और उनके दो बच्चे सार्थक और सक्षम सहरावत हैं।

पूनम सहरावत गुरुग्राम की रहने वाली हैं। उनके पति का खुद का कारोबार है और उनके दो बच्चे सार्थक और सक्षम सहरावत हैं।

38 साल की पूनम सहरावत गुरुग्राम की रहने वाली हैं। पूनम की शादी 18 साल की उम्र में हो गई थी। तब से मानो जैसे बच्चे और परिवार ही पूरी दुनिया हो। पूरा समय उनके लिए दिया। तीन साल पहले पूनम के दोनों बच्चे बोर्डिंग स्कूल पढ़ने चले गए, जिसके बाद वह काफी अकेली हो गईं। इन दिनों किसी कारण वो धीरे-धीरे डिप्रेशन की चपेट में आने लगीं।

पूनम बताती हैं, “डिप्रेशन से उबरने के लिए मैं रेगुलर मंदिर जाने लगी। मुझे वहां सुकून मिलता था तो मैं घंटों बैठी रहती थी। एक दिन मेरा ध्यान मंदिर में चढ़ने वालों फूलों पर गया। मैंने देखा भगवान पर चढ़ने वाले फूल बाद में कचरे में फेंके जा रहे थे। मुझे उस दिन ये देख कर बहुत दुःख हुआ। मैं घर आ कर काफी रिसर्च की तो मुझे पता चला कि गोबर और पराली से कई प्रोडक्ट्स बनते हैं। इस पर मैंने सोचा क्यों न फूलों से भी कुछ बनाया जाए। सबसे पहले मैंने धूपबत्ती बनाई और मंदिरों में ही जाकर बांट दी। इस तरह मेरा सफर शुरू हुआ।”

एक्सपीरिएंस बिना शुरुआत मुश्किल भरी थी

पूनम ने सबसे पहले फूलों से धूपबत्ती बनाना सीखी, जिसे मंदिरों में जाकर बांटती थीं।

पूनम ने सबसे पहले फूलों से धूपबत्ती बनाना सीखी, जिसे मंदिरों में जाकर बांटती थीं।

वर्क एक्सपीरियंस न होने के कारण पूनम को इस काम में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रिसर्च के दौरान उन्हें एक ग्रुप के बारे में पता चला जो मंदिर में चढ़े फूलों से अगरबत्ती बना रहे हैं। पूनम ने उन लोगों से जानकारी लेने की कोशिश की पर उन्हें कोई मदद नहीं मिली।

पूनम कहती हैं, “जब मैं इन फूलों के बेहतर इस्तेमाल की खोज में लगी थी, तभी मुझे कुछ लोगों के बारे में पता चला जो गाय के गोबर से सामान बना रहे थे। उनसे प्रेरित होकर मैंने गोबर की जगह बेकार फूलों को अपनाने का फैसला किया। फिर ढेरों एक्सपेरिमेंट के बाद मुझे फाइनल तरीका पता लगा।

अब मुझे फूलों की जरूरत थी, जिसके लिए मैंने मंदिरों के पुजारियों से बात करना शुरू किया। हर रोज सुबह उठकर मंदिरों से निकले फूलों को जमा करना शुरू कर दिया। इसके लिए पुजारियों से भी बात की, लेकिन उन्हें ये काम संभव ही नहीं लग रहा था। किसी तरह मैं एक दोस्त की मदद से इस काम की शुरुआत कर दी। हमने 10 महिलाओं की एक टीम बनाई और सबसे पहले धूपबत्ती बनाई। जिसे आसपास के मंदिरों में जा कर बांटा। ये देख पुजारी भी काफी अचंभित हुए और ये हमारी पहली जीत थी।”

पूनम फिलहाल 12 से 15 मंदिरों से जुड़ी हैं जहां से हर रोज फूल इक्कठा कर कई तरह के प्रोडक्ट तैयार करती हैं।

ऐसे तैयार किए जाते हैं

पूनम फूलों से दीपक, मूर्ति, धूपबत्ती, स्वास्तिक, एयर फ्रेशनर आदि बनाती हैं।

पूनम फूलों से दीपक, मूर्ति, धूपबत्ती, स्वास्तिक, एयर फ्रेशनर आदि बनाती हैं।

भारत मंदिरों का देश है, यहां हर गली- मोहल्ले में एक मंदिर है। इन मंदिरों में काफी फूल चढ़ाए जाते हैं। जो एक बार चढ़ाए जाने के बाद कहीं कचरे या नदी-नालों में फेंक दिए जाते हैं। पूनम इन फूलों को मंदिरों से उठाकर कुछ प्रोसेस कर खूबसूरत प्रोडक्ट्स तैयार करती हैं।

पूनम बताती हैं, “ सबसे पहले हम फूलों को सुखाते हैं उसके बाद मशीन की मदद से पाउडर बना लेते हैं। पाउडर में कुछ इंग्रेडिएंट्स मिलाकर उसे अलग-अलग शेप में मोल्ड किया जाता है। उसके बाद फिर से उन्हें धूप में सुखाया जाता है। इस प्रोसेस से हम दीपक, मूर्ति, धूपबत्ती, स्वास्तिक, एयर फ्रेशनर और कई तरह के होम डेकोर बनाते हैं। इसके अलावा माता की इस्तेमाल चुनरी से पाउच भी बनाया जाता है। हम किसी तरह प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचते हैं। सबसे खास बात ये है की हमारे ज्यादातर प्रोडक्ट इको फ्रेंडली हैं, जिन्हें बाद में पौधों के लिए खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।”

पूनम के सभी प्रोडक्ट काफी किफायती होते हैं, जो 50 रुपए से लेकर 120 रुपए के बीच के हैं। उन्हें हर महीने करीब 80 हजार रुपए की कमाई होती है।

प्रोडक्ट्स कैसे सेल होते हैं?

इ-कॉमर्स और सोशल मीडिया की मदद से अपने प्रोडक्ट की बिक्री करती हैं।

इ-कॉमर्स और सोशल मीडिया की मदद से अपने प्रोडक्ट की बिक्री करती हैं।

पूनम ने जब मंदिरों से फूल इकट्ठा करना शुरू किया तो लोगों की नजर में उनकी अलग ही छवि बन गई। लोग भी उन्हें मदद करने के लिए आगे आने लगे। गुरुग्राम के श्री माता शीतला देवी मंदिर में उन्हें प्रोडक्ट बेचने का प्रस्ताव मिला।

पूनम बताती हैं, ‘सबसे पहले हमने स्टॉल लागर प्रोडक्ट्स की बिक्री की। फिर लोगों को हमारे बारे में पता चलने लगा तो हमें कई जगह बुलाया जाने लगा। आने वाले 10 फरवरी को हमें पुडुचेरी के ‘हुनर हाट’ में अपना स्टॉल लगाने के लिए बुलाया गया है। इसके अलावा हम स्वदेश मेला और इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में भी हिस्सा लेते हैं। ऑनलाइन सेलिंग के लिए इ-कॉमर्स और सोशल मीडिया की मदद लेते हैं।’ पूनम ने अपने प्रोडक्ट्स के लिए खुद का वेब पेज बनाया है इसके अलावा वो अमेजन और इंस्टाग्राम से भी बिक्री करती हैं।

नेशनल वीमेन कमीशन ने इन्फ्लुएंसर का खिताब दिया है

अब तक वो हजारों महिलाओं को ऑनलाइन और ऑफलाइन ट्रेनिंग दे चुकी हैं। जिनमें से 500 से अधिक महिलाएं जम्मू-कश्मीर की हैं।

अब तक वो हजारों महिलाओं को ऑनलाइन और ऑफलाइन ट्रेनिंग दे चुकी हैं। जिनमें से 500 से अधिक महिलाएं जम्मू-कश्मीर की हैं।

पूनम के अनुसार इस बिजनेस का मकसद पैसा कमाना नहीं, बल्कि बदलाव में अपनी भागीदारी निभाना है। यही वजह कि वो कई शहरों में महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही हैं ताकि वो जहां रहती हैं, वहां इस तरह का काम कर सकें।

पूनम का कहना है, ‘भारत में जितने मंदिर हैं ,उतने ही भक्त। ऐसे में किसी एक इंसान से बदलाव नहीं लाया जा सकता। फूलों का कचरे में जाना कहीं न कहीं हमारी आस्था को भी ठेस पहुंचता है। इसका विकल्प यही है कि हम इससे कुछ अच्छे प्रोडक्ट बना लें। इससे न सिर्फ फूल सही जगह जाएंगे, बल्कि इनसे ऑर्गेनिक प्रोडक्ट भी तैयार होंगे।

जो धूपबत्ती हम बनाते हैं, उनमें किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है। जिन मूर्तियों को हम तैयार करते हैं, उनको प्रवाहित करने से प्रदूषण भी नहीं होता है। इसी सोच के साथ मैं कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी में जाकर लोगों को ट्रेनिंग देती हूं।’

पूनम जम्मू एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, थल सेना और राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ भी जुड़ी हुई हैं। अब तक वो हजारों महिलाओं को ऑनलाइन और ऑफलाइन ट्रेनिंग दे चुकी हैं। जिनमें से 500 से अधिक महिलाएं जम्मू कश्मीर की हैं। पूनम को उनके इस बेहतर काम के लिए कई अवॉर्ड और सराहना भी मिला है। हाल ही में नेशनल कमीशन वूमेन ने उन्हें इनफ्लुएंसर का खिताब दिया है।