Tree Plantation: सिंचाई की फिक्र / 4000 साल पुरानी एक पौधा-एक मटका पद्धति, मोदी ने भी इसे अपनाने की अपील की

सिंचाई की फिक्र / 4000 साल पुरानी एक पौधा-एक मटका पद्धति, मोदी ने भी इसे अपनाने की अपील की

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में मटका सिंचाई पद्धति का जिक्र मन की बात में किया था। उन्होंने अफ्रीका की 4 हजार साल पुरानी एक पौधा-एक मटका पद्धति की जानकारी ब्लॉग में भी दी। इस पद्धति से पानी को 70% तक बचाया जा सकता है। यह ऐसे राज्यों में कारगर है, जो हर साल जलसंकट से जूझते हैं। गुजरात, मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों में इसे अपनाया जा रहा है। जानिए क्या है पद्धति और कैसे यह बंजर जमीन में हरियाली लाती है।



पद्धति से जुड़े पांच सवाल-जवाब


ऐसे करें पौधों की सिंचाई

पौधों को पानी पहुंचाने का यह सबसे कारगर तरीका माना जाता है। मटका सिंचाई से सीधे जड़ों तक पानी पहुंचता है और मिट्टी में नमी बरकरार रहती है। इससे पौधा हरा-भरा रहता है। सिंचाई का यह विकल्प 70% तक पानी की बचत करता है।
मटका सिंचाई की शुरुआत अफ्रीका में करीब 4 हजार साल पहले हुई थी। छिद्रित मटके से पानी को मिट्टी अपनी जरूरत के मुताबिक खींचती है। अफ्रीका में इसे ओल्ला कहते हैं और सिंचाई के लिए पतले मुंह वाले मटके का इस्तेमाल किया जाता है। 
हजारों साल से इस पद्धति का प्रयोग ईरान, दक्षिण अमेरिका में किया जा रहा है। इसके बाद इसे भारत, पाकिस्तान, ब्राजील, इंडोनेशिया, जर्मनी जैसे देशों ने भी अपनाया। मटका सिंचाई पद्धति का जिक्र कृषि विज्ञान पर लिखी गई पहली किताब फेन-शेंग ची-शू में किया गया है। किताब के मुताबिक, चीन में इस पद्धति का प्रयोग 2000 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। 
इसे लगाने के लिए एक औसत आकार का मटका लें। मटके को पौधे से कुछ दूरी पर जमीन के अंदर लगा दें। जमीन पर सिर्फ मटके का मुंह दिखना चाहिए। अब इसे ऊपर तक पानी से भर दें। 
मटके की दीवार से धीरे पौधे तक पहुंचता रहेगा। अब सतह पर पौधे के चारों ओर घास-फूस या सूखी पत्तियां डाल दें ताकि सूरज की धूप मिट्टी की नमी न खत्म कर सके।
अगर पौधा नहीं है, बीज डाल रहे हैं तो मिट्टी के अंदर बीज और मटके से रिसने वाले पानी में गैप कम रखें ताकि यह आसानी से पौधे में तब्दील हो सके।


देश के कई राज्यों में अपनाई पद्धति

मध्य प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस के मुताबिक, प्रदेश के बुरहानपुर में 5 साल से मटका पद्धति को अपनाया जा रहा है। यहां के गांवों में हरियाली बढ़ रही है। शहर के कई स्थानों में इसका असर देखा जा सकता है। अलनीनो प्रभाव से मानसून की बिगड़ी रफ्तार के कारण यहां जल संरक्षण के ऐसे उपाय अपनाए जा रहे हैं। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्लॉग में लिखा कि इस पद्धति का इस्तेमाल गुजरात के कई हिस्सों में कई सालों से किया जा रहा है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेंटर फॉर एन्वायरमेंट कंसर्न, हैदरबाद का कहना है कि यह सिंचाई की अनूठी पद्धति है, जिससे जड़ों के हर हिस्से तक पानी पहुंचता है।
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर, कुर्नूल और चित्तूर जिले में मटका पद्धति से 400 एकड़ में इसकी शुरुआत की गई है। 2015 में यहां पहले ही फल और सब्जियों की खेती में यह प्रयोग हो चुका है। प्रयोग में सामने आया कि यह पद्धति मिट्टी, पौधों की सेहत और किसान की आमदनी तीनों के लिए फायदेमंद है।


कौन से पौधे उगाए जा सकते हैं?

जवाब : सब्जियों और फलों के वार्षिक और बारहमासी पौधों को उगाने के लिए यह पद्धति बेहद कारगर है। सेम, कॉर्न, खीरा, लहसुन, तरबूज, पुदीना, प्याज, मटर, आलू, रोजमेरी, सूरजमुखी और टमाटर जैसे पौधे खासतौर पर लगाए जा सकते हैं। फॉर्म हाउस और बगीचों के लिए भी यह प्रयोग किया जा सकता है। ढलान मैदान वाले भाग जहां पानी रुकता, वहां भी मटका पद्धति से सिंचाई की जा सकती है।

कितने समय के अंतराल पर पानी भरना जरूरी है?

जवाब :  यह मिट्टी के प्रकार, पौधा और जलवायु पर निर्भर रहता है। बंजर जमीन है तो 20 घंटे के अंदर दोबारा मटका भरना होगा। साथ ही इसे ढकना न भूलें, ताकि पानी भाप बनकर उड़ न पाए। अगर सामान्य मिट्टी है तो 24-30 घंटे में पानी भरें। यह पद्धति खासतौर पर उनके लिए फायदेमंद है जो पौधों को ज्यादा समय नहींं दे पाते।

मटका कैसा होना चाहिए?

जवाब : मटका मिट्टी का ही होना चाहिए, किसी धातु का नहीं। हां, आकार में फर्क हो सकता है। कई देशों में अलग-अलग आकार वाले मटके का चलन है जैसे अफ्रीका में सुराहीनुमा और भारत में गोल मटका। मिट्टी के बर्तन से पानी रिसकर ही पौधों की जड़ों को नम रखता है।


मटका काम कर रहा है, कैसे चेक करें?

जवाब: इसमें किसी तरह का छेद नहीं करना है। मटके में पानी भरें, अब देखें इसकी तली में नमी दिखाई दे रही है। ऐसा होने पर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

for more details check below link:

https://www.bhaskar.com/lifestyle/happy-life/news/pm-modi-shares-clay-pot-irrigation-methos-in-mann-ki-baat-its-saves-70-percent-water-01593575.html

https://www.bhaskar.com/interesting/news/target-to-develop-forest-in-5000-sq-km-sewage-water-is-being-used-in-plants-126408477.html?ref=ahws

https://www.narendramodi.in/a-daughter-a-tree-and-a-teacher-3036

Tree Plantation : Recycling Plastic bottle in the garden/Parks (Drip irrigation through plastic bottles)

For watering, we can use plastic bottle Drip Irrigation method, which is easy and requires filling of bottles in a matter of days.

Drip Irrigation is a great way to water establishing trees. Getting water directly to the roots is much more efficient than any broadcast irrigation. It is possible to set up drip irrigation without large water tanks and hundreds of feet of pipe. This shows how to use plastic bottles to drip irrigate the trees as below image.

Farmers Innovate – Drip irrigation through bottles

Web link:

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Farmers Innovate – Drip irrigation through bottles

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Plastic bottle Easy watering system for plants

Drip irrigation through matka or Olla for tree plantation and watering.

https://www.bhaskar.com/lifestyle/happy-life/news/pm-modi-shares-clay-pot-irrigation-methos-in-mann-ki-baat-its-saves-70-percent-water-01593575.html

https://www.narendramodi.in/a-daughter-a-tree-and-a-teacher-3036

Web link:

Broken Ground Video Series – Olla Irrigation

Plantation via Matka – thimbak Method

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matka irrigation

Matka Sinchan Effective Irrigation method

https://www.youtube.com/watch?v=NvNGkms9-cA

 How to grow plants with less water | Clay Pot irrigation technique

Tree Plantation :राजस्थान में परम्परागत पेड़-पौधे (Traditional trees in Rajasthan)

https://hindi.indiawaterportal.org/Traditional-trees-in-Rajasthan

राजस्थान में परम्परागत पेड़-पौधे

खेजड़ी


खेजड़ीराजस्थान में पेड़ों की सुरक्षा का इतिहास बहुत पुराना है। यहाँ पेड़ देवता की तरह पूजे जाते हैं। राजस्थान के ग्रामीणों की पेड़ के प्रति कर्तव्यनिष्ठा से प्रेरित होकर ‘चिपको आन्दोल’ की शुरुआत हुई थी। यहाँ के परम्परागत पेड़ जैसे खेजड़ी, बोरड़ी, देशी बबूल, कुमटिया, जाल, कैर, फोग तथा रोहिड़ा आदि बीजों के प्राकृतिक प्रसार से स्वतः ही खेतों में उग जाते हैं। किसान इन पेड़-पौधों की पूरी देखभाल करते हैं और हल चलाते समय पूरी सावधानी रखते हैं, ताकि इनकी जड़ें क्षतिग्रस्त ना हों।

पेड़ों के मुख्य लाभ निम्न प्रकार हैं-
1. पेड़ तेज हवा के साथ खेत की उपजाऊ मिट्टी को उड़ने से रोकते हैं।
2. पेड़ों से गिरने वाली पत्तियाँ जमीन को उर्वरकता प्रदान करती हैं।
3. पेड़ की जड़ें पानी के तेज बहाव से होने वाले भूक्षरण को रोकती हैं।
4. पेड़ फसल को गर्म हवा व लू से बचाते हैं।
5. पेड़ की छाया में पशु एवं पक्षी आराम कर पाते हैं।
6. खेजड़ी, केर, फोग एवं बोरड़ी की पत्तियाँ पशुओं के लिये चारे के रूप में काम आती हैं।
7. खेजड़ी से सांगरी, बोरड़ी से बेर और कुमटिया तथा केर जैसे फल एवं सब्जी खाने के काम आते हैं। ग्रामीण लोग अपने उपयोग से ज्यादा फलों एवं सब्जियों को बाजार में बेचकर आयवर्धन भी करते हैं।
8. पेड़ की लकड़ी से ईंधन मिलता है और टहनियाँ व काँटे बाड़ बनाने में उपयोगी रहती हैं।

राजस्थान में मुख्यतः ये पेड़ पाये जाते हैं
खेजड़ी का उपयोग- यह राजस्थान का राज्य वृक्ष है इसे तुलसी भी कहा जाता है। इसकी जड़े नत्रजन देती है। खेजड़ी से पत्ती, लकड़ी व सांगरी प्राप्त होती है। पत्ती पशुओं (विशेषकर ऊँट, बकरी) के चारे के काम में आती है। लकड़ी जलाने व कच्चे मकान की छत बनाने के काम आती है।

बोरड़ी का उपयोग- इससे पत्ती (पाला), लकड़ी, कांटा (पाई) व बेर प्राप्त होते हैं। पत्ती बकरी तथा ऊँट के लिये चारे के काम में आती है। लकडी जलाने तथा कांटे खेत एवं घर के चारों तरफ बाड़ बनाने के काम आती है। बैर खाने के काम में आते हैं।

कैर का उपयोग- कैर की लकड़ी को घर में खाना बनाने के लिये जलाते हैं और गाँव में झोपड़ा बनाने व कच्ची साल/ मकान बनाने के काम आती है। कैरीया से सब्जी व अचार बनाया जाता है।

जाल का उपयोग- जाल की लकड़ी जलाने के काम आती है। उसका फल, जिसे पीलू कहा जाता है। वे खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। यहाँ के लोग इसे राजस्थान का अंगूर भी कहते हैं, इसकी छाया में जंगली मोर, हिरन, नीलगाय आदि निवास करते हैं।

गुन्दी का उपयोग- यह पेड़ भी जाल जैसा ही होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है। इसकी पत्तियाँ ऊँट तथा बकरी खाते हैं। इससे फल भी प्राप्त होता है, जिसे गुन्दिया नाम से जाना जाता है। इसके फल का उपयोग सब्जी एवं अचार बनाने में किया जाता है।

कुमटिया का उपयोग- इसकी लकड़ी का उपयोग घरेलू मकान बनाने, जलावन एवं खेती के औजार बनाने में किया जाता है। तथा फल (बीज) का उपयोग सब्जी के रूप में एवं पत्तियों तथा फलियों का उपयोग पशुओं के चारे के लिये किया जाता है।

रोहिड़ा का उपयोग- रोहिड़ा राजस्थान का इमारती वृक्ष है इसकी लकड़ी का उपयोग इमारती सामान (पलंग, कुर्सी, सोफासेट, दरवाजे आदि) बनाने में किया जाता है। इसकी लकड़ी पर खुदाई कर आकर्षक फर्नीचर विदेशों में भी निर्यात किये जाते हैं।

फलोद्यान- लोगों का पोषण स्तर सुधारने के लिये घरों में छोटे-छोटे फलोद्यान लगाने को भी प्रोत्साहित किया गया है, जिसमें 20-25 पौधों की देखभाल वे स्वयं कर सकें। इन उद्यानों में ज्यादातर नींबू, अनार, गून्दा, बेर आदि के पौधे लगाए जाते हैं।

फलोद्यान के लिये किसान नर्सरी से फलों के पौधे लाते हैं। फलोद्यान के लिये उपयुक्त स्थान पर डंडियों या झाड़ियों से बाड़ बना दी जाती है, जिसमें बावलडिया/देशी बोरड़ी की झाड़ी बहुत काम आती है। 1 बीघा जमीन में 30 पौधे लगाए जा सकते हैं। तैयार पौधों को 2 फीट x 2 फीट x 2 फीट आकार के गड्ढे खोदकर उसमें खाद आदि मिलाकर बोया जाता है। गर्मी की तेज धूप और सर्दी से पौधों को बचाने के लिये पौधों को झोपा बनाकर उससे ढँक दिया जाता है।

ओरण एवं गोचर (चारागाह)


ओरण, गोचर को मवेशियों के चरने के लिये बनाया जाता है और यह गाँव की सामूहिक जमीन होती है। गाँव का कोई भी मवेशी गोचर भूमि में चर सकता है। इसका प्रशासनिक अधिकार पंचायत के हाथ में होता है, परन्तु यह जमीन इस काम के अलावा किसी अन्य काम के लिये ना तो किसी को एलॉट की जा सकती है, ना ही बेची जा सकती है और ना ही किसी अन्य काम के लिये इस्तेमाल की जा सकती है। कानूनी तौर पर गोचर में कोई भी व्यक्ति खेती नहीं कर सकता है, क्योंकि यह जनता की सम्पत्ति होती है।

परिस्थिति के अनुसार इसका कुछ अधिकार सरकार को होता है कि वह इस भूमि को जनता के लिये या किसी अन्य काम के लिये इस्तेमाल कर सकती है। यह पूरे वर्ष इस्तेमाल होती है। गोचर में कुछ समय के लिये चराई को बन्द करने के लिये बरसात से पहले गाँव के कुछ वृद्ध मुखिया आपस में मिलकर एक मीटिंग करते हैं ताकि बरसात में गोचर में फिर से घास उग सके।

ओरण एवं गोचर के लिये पंचायत के अधिकारी या मन्दिर के पुजारी नियम बनाते हैं। जिस समय गोचर को बन्द किया जाता है उस समय गोचर पर एक रखवाला रख दिया जाता है, ताकि गोचर में कोई मवेशी आकर चराई न कर सके। परन्तु कुछ गाँवों में रखवाला रखने की बजाय गोचर की सुरक्षा के लिये प्रत्येक घर से प्रतिदिन एक व्यक्ति को नियुक्त कर दिया जाता है, क्योंकि गोचर की सुरक्षा करना गाँव के प्रत्येक आदमी की सामाजिक जिम्मेदारी का काम होता है।

इसलिये गाँव के सभी लोग इसके लिये बैठकर आपस में सलाह करते हैं फिर उसी हिसाब से गोचर पर प्रत्येक दिन हर घर से एक आदमी ओरण गोचर की सुरक्षा के लिये नियुक्त कर दिया जाता है। ओरण गोचर में परम्परागत पौधे एवं घास उगाए जाते हैं ताकि पशुओं को चारा मिल सके। पश्चिमी राजस्थान में सेवण, धामण, भुरट, गंठिया, धमासिया, लोपड़ी, दुधी, गोखरु (धकड़ी) मोथा, बेकर, कंटीली, खीप और सीनिया घास बहुत पाई जाती है।

Tree Plantation :best time for tree plantation in india

Planting

The best time for planting trees is during the rainy season (June-September). In northern India planting can be done in January-February before the new growth starts and 1-2 years old saplings have better chance of survival and early flowering. Large pits (1 meter in depth and diameter) should be prepared 2-3 months before planting. The soil is mixed with adequate amount of organic manure and bone meal and allowed to settle by exposing to rains or watering the pits. The tree saplings should have straight stem and undisturbed main shoot.

other good weblinks as below:

http://www.indiaagronet.com/horticulture/CONTENTS/Trees.htm

https://timesofindia.indiatimes.com/city/mumbai/Monsoon-wrong-time-to-plant-saplings-Experts/articleshow/6149248.cms

https://www.thebetterindia.com/135343/how-to-grow-trees-in-90-days/https://discuss.farmnest.com/t/best-time-to-plant-trees/1347/7

https://yourstory.com/2016/01/sankalptaru?utm_pageloadtype=scroll

Homepage

https://www.grow-trees.com/