Startup: कोरोना में अपने पैशन को प्रोफेशन में बदला; इंस्टाग्राम से मार्केटिंग शुरू की, अब 10 लाख टर्नओवर

कोरोना में अपने पैशन को प्रोफेशन में बदला; इंस्टाग्राम से मार्केटिंग शुरू की, अब 10 लाख टर्नओवर

Startup – Art and Craft.

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जम्मू कश्मीर की रहने वाली नितिका गुप्ता पाइन कोन की फाउंडर हैं। वे इंस्टाग्राम के जरिए वॉल बास्केट, लॉन्ड्री बास्केट, प्लांटर बास्केट सहित कई हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट की देशभर में मार्केटिंग कर रही हैं। उनके साथ जम्मू-कश्मीर, असम, हिमाचल और मणिपुर के 200 से ज्यादा कारीगर जुड़े हैं। कई बड़े ब्रांड्स के साथ भी उनका टाइअप है। महज एक साल में उन्होंने अपने स्टार्टअप के जरिए 10 लाख रुपए का बिजनेस किया है। साथ ही बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार भी दिया है।

तो चलिए आज की पॉजिटिव खबर में पढ़िए नितिका के सफर कहानी खुद नितिका की जुबानी….

मैं जम्मू-कश्मीर में पली बढ़ी। वहां के कल्चर और फैशन से जुड़ी रही। बचपन से ही क्रिएटिव चीजें बनाने का शौक था। अलग-अलग तरह की चीजें बनाकर अपने घर को सजाती थी। 12वीं बाद जब मेरे फ्रेंड्स मेडिकल और इंजीनियरिंग फील्ड में करियर को लेकर प्लान कर रहे थे, तब भी मेरे दिमाग में मेरा पैशन ही था। मुझे नहीं पता था कि आगे यह प्रोफेशन बनेगा या नहीं, लेकिन जो कुछ करना चाहती थी, अपनी पसंद का ही करना चाहती थी। लिहाजा गांधीनगर चली गई और NIFT में एडमिशन लिया।

यहां अच्छे लोग मिले, कई तरह की चीजों को करीब से देखने को मिला। अलग-अलग राज्यों के आर्ट एंड क्राफ्ट से जुड़े लोगों से मिलने का मौका मिला। जैसे मणिपुर के कारीगरों से मिली, वहां के लोकल प्रोडक्ट को देखा, हिमाचल और असम के कारीगरों के आर्ट को देखा। धीरे-धीरे मैं उनसे जुड़ती गई। कुछ वक्त बाद मैं इस तरह के ट्रेडिशनल आर्ट को नए तरह से डिजाइन करने की प्लानिंग करने लगी, जो वक्त के हिसाब से डिमांडिंग और क्रिएटिव हो।

NIFT से पढ़ाई करने के बाद मैंने 12 साल तक अलग-अलग कंपनियों में काम किया। प्रोडक्ट डिजाइनिंग से लेकर प्रोडक्ट मैनेजमेंट की टीम को लीड किया।

NIFT से पढ़ाई करने के बाद मैंने 12 साल तक अलग-अलग कंपनियों में काम किया। प्रोडक्ट डिजाइनिंग से लेकर प्रोडक्ट मैनेजमेंट की टीम को लीड किया।

इसके बाद प्रोडक्ट डिजाइनिंग को लेकर मैंने कई प्रोजेक्ट किए। कई राज्यों में वर्कशॉप और एग्जीबिशन में गई। इससे प्रोफेशनल लेवल पर आर्ट एंड क्राफ्ट को समझने का मौका मिला। इस तरह नई-नई चीजें सीखते-सीखते कब चार साल गुजर गए पता ही नहीं चला। खैर 2009 में मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो गया। अब बारी थी करियर को आगे बढ़ाने की। जल्द ही मुझे मन मुताबिक नौकरी भी मिल गई। 2009 में प्रोडक्ट डिजाइनर के रूप में काम करना शुरू किया।

इसके बाद अलग-अलग शहरों में कई बड़े ब्रांड्स के साथ काम किया। जहां मैंने प्रोडक्ट डिजाइनर से लेकर प्रोडक्ट मैनेजमेंट और ब्रांड मैनेजमेंट तक की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन वक्त के साथ नौकरी को लेकर मेरी दिलचस्पी कम होती जा रही थी। रोज-रोज सुबह उठकर तैयार होना और ऑफिस जाना, फिर दफ्तर से लौटते ही घर का काम करना और सो जाना। इस रूटीन लाइफ से मन उब गया था।

तब मैं जम्मू-कश्मीर के साथ ही असम और मणिपुर के कारीगरों से जुड़ी थी। उनसे अक्सर बातचीत करती रहती थी। इस दौरान मुझे रियलाइज हुआ कि इन कलाकारों के काम को जितनी जगह मिलनी चाहिए, जितना कारगर प्लेटफॉर्म मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पा रहा है। इसी वजह से हुनर होने के बाद भी इनकी अच्छी कमाई नहीं हो पा रही है और ये तंगहाल जिंदगी जी रहे हैं।

चूंकि मैं अपनी नौकरी में काफी व्यस्त रहती थी, लेकिन इन कारीगरों के बारे में प्लान करती रहती थी। अक्सर सोचती रहती थी कि इनके काम को कैसे पहचान दिलाई जाए, कैसे इनकी लाइफ बेहतर की जाए। कुछ महीनों तक ऐसा ही चलता रहा। घर से ऑफिस और फिर ऑफिस से घर।

हम ट्रेडिशनल आर्ट को ही नए सिरे से डिजाइन करके हैंडीक्राफ्ट आइटम्स तैयार कर रहे हैं, ताकि लोकल कारीगरों के काम को ग्लोबल पहचान मिल सके।

हम ट्रेडिशनल आर्ट को ही नए सिरे से डिजाइन करके हैंडीक्राफ्ट आइटम्स तैयार कर रहे हैं, ताकि लोकल कारीगरों के काम को ग्लोबल पहचान मिल सके।

इसी बीच नई उम्मीदों के साथ साल 2020 की दस्तक हुई। मन में कई चीजों को लेकर प्लानिंग थी। उसमें खुद का कुछ करने का भी प्लान था, लेकिन थोड़े दिनों बाद ही कोरोना ने दस्तक दे दी। मार्च में लॉकडाउन लग गया। एक तरह से सबकुछ ठप हो गया। इससे ज्यादातर लोगों को तकलीफ हुई। मुझे भी परेशानी झेलनी पड़ी, वर्क कल्चर चेंज हो गया, ऑफिस की बजाय घर ही दफ्तर हो गया, लेकिन इसका फायदा भी हुआ।

वर्क फ्रॉम होम के दौरान कुछ सोचने का वक्त मिल गया। अपनी पसंद की चीजों को लेकर प्लानिंग करने का वक्त मिल गया। ये वो दौर था जब स्थानीय कारीगरों पर कोरोना की सबसे ज्यादा मार पड़ी थी। उनका काम-धंधा बंद हो गया था। मुझे लगा कि यह सही वक्त है अपने पैशन को प्रोफेशन में बदलने का।

अगर अभी फैसला नहीं ले पाई तो आगे शायद कुछ अलग करने का प्लान करना मुमकिन नहीं होगा। फिर क्या था फौरन कुछ कारीगरों को फोन घुमाया और अपनी इच्छा उनसे जाहिर कर दी। वे भी खाली बैठे थे, उन्हें भी कुछ न कुछ चाहिए था। लिहाजा उन्होंने साथ काम करने की रजामंदी दे दी।

इसके बाद मैंने कुछ प्रोटोटाइप तैयार किए और उन्हें अलग-अलग राज्यों के कारीगरों के पास भेजा। उन्होंने उसके आधार पर कुछ होम डेकोर आइटम्स तैयार किए और फिर मेरे यहां भेजे। ये आइटम्स बेहद ही खूबसूरत थे। अब सवाल था कि इनकी मार्केटिंग कैसे की जाए। तभी मुझे ध्यान आया कि लोग इंस्टाग्राम पर इस तरह के प्रोडक्ट की तलाश करते रहते हैं। फिर इंस्टाग्राम पर Pine Cone नाम से एक पेज बनाया और उस पर अपने प्रोडक्ट की फोटो अपलोड कर दी। शुरुआत के कुछ दिनों तक तो कोई खास रिस्पॉन्स नहीं आया।

ये सभी हैंडमेड प्रोडक्ट हैं। पिछले कुछ सालों में इनकी डिमांड बढ़ी है। लोग अपने घरों को सजाने के लिए ऐसे प्रोडक्ट खरीद रहे हैं।

ये सभी हैंडमेड प्रोडक्ट हैं। पिछले कुछ सालों में इनकी डिमांड बढ़ी है। लोग अपने घरों को सजाने के लिए ऐसे प्रोडक्ट खरीद रहे हैं।

फिर मैंने डिजिटल मार्केटिंग की हेल्प ली और अपने पेज को प्रमोट करना शुरू किया। पेड ऐड रन किए। इसका फायदा भी मिला और लोग हमारे प्रोडक्ट की डिमांड करने लगे। इस तरह दिसंबर 2020 में मेरा पैशन प्रोफेशन में बदल गया। जैसे-जैसे लोग ऑर्डर करते गए, मैं अपने काम का दायरा बढ़ाते गई। अब बारी थी कंपनी रजिस्टर करने की। अपने CA दोस्त से कॉन्टैक्ट किया और 15 दिन के भीतर कंपनी रजिस्टर हो गई। इसके बाद दिल्ली में एक ऑफिस खोला। इसमें करीब 1.5 लाख रुपए खर्च हो गए। हालांकि ये पैसे कुछ ही महीने में रिटर्न बैक भी हो गए।

साल 2021 के अप्रैल-मई तक मेरे काम को अच्छी खासी पहचान मिल गई। दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार सहित कई राज्यों से ऑर्डर मिलने लगे। इसके बाद जब कोरोना कम हुआ तो मैं मणिपुर, असम और हिमाचल में गई। वहां के करीगरों से मिली, उन्हें बेहतर प्रोडक्ट बनाने की ट्रेनिंग दी। धीरे-धीरे मेरे साथ काम करने वाले कारीगरों की संख्या भी बढ़ती गई। अभी कोविड की वजह से ग्राउंड पर नहीं जा पा रही हूं तो ऑनलाइन ही कारीगरों को ट्रेनिंग देती हूं।

फिलहाल मेरे साथ करीब 200 कारीगर काम करते हैं। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर महिलाएं हैं। ये वो महिलाएं हैं जो पहले बहुत मुश्किल से खुद का गुजारा करती थीं, लेकिन अब इनकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी।

ये असम की महिलाएं हैं, जो जलकुंभी कलेक्ट कर रही है। इसे सुखाने के बाद ये महिलाएं कई तरह के हैंडीक्राफ्ट आइटम्स बनाती हैं।

ये असम की महिलाएं हैं, जो जलकुंभी कलेक्ट कर रही है। इसे सुखाने के बाद ये महिलाएं कई तरह के हैंडीक्राफ्ट आइटम्स बनाती हैं।

अभी मेरे पास असम,हिमाचल, मणिपुर और जम्मू-कश्मीर से एक दर्जन से ज्यादा वैराइटी प्रोडक्ट हैं। इनमें वॉल बास्केट, लॉन्ड्री बास्केट, प्लांटर बास्केट जैसे प्रोडक्ट शामिल हैं। ये सभी प्रोडक्ट मेड टू ऑर्डर होते हैं। यानी कस्टमर जिस तरह के प्रोडक्ट की डिमांड करते हैं, उनके हिसाब से मैं प्रोडक्ट तैयार करवा के भेजती हूं। मेरे प्रोडक्ट की खासियत यह है कि हम ट्रेडिशनल आर्ट को मॉडर्न और क्रिएटिव लुक देते हैं। ताकि कस्टमर्स के घर की खूबसूरती बढ़ जाए।

ये काम सिर्फ बिजनेस नहीं है। मेरा मकसद भी है। इसीलिए मैं अपने एक-एक कारीगर को जानती हूं, उनकी खूबियों को जानती हूं। इतना ही नहीं मैं अपने ज्यादातर कस्टमर्स को भी उनके नाम से जानती हूं। कई कस्टमर्स तो इस कदर मुझसे जुड़ गए हैं कि वे हर महीने कुछ न कुछ प्रोडक्ट मंगाते रहते हैं।

जहां तक मार्केटिंग की बात है मैं पूरी तरह सोशल मीडिया के जरिए ही अपने प्रोडक्ट बेच रही हूं। हर महीने अच्छी खासी संख्या में ऑर्डर आ जाते हैं। पिछले एक साल के दौरान करीब 10 लाख रुपए का बिजनेस किया है। इसके साथ ही कई बड़े ब्रांड्स भी मेरे साथ जुड़े हैं, जिनके लिए मेरी टीम खास तौर से प्रोडक्ट बनाती है। आने वाले दिनों में और भी नए प्रोडक्ट मैं लॉन्च करने वाली हूं।

Reduce Reuse Recycle : ‘जीरो वेस्ट’ स्टोर रिटेल बिजनेस में अगला बड़ा कदम होने जा रहे हैं, लोगों को अपनी कुछ सहूलियतें छोड़ने के लिए तैयार होना चाहिए

‘जीरो वेस्ट’ स्टोर रिटेल बिजनेस में अगला बड़ा कदम होने जा रहे हैं, लोगों को अपनी कुछ सहूलियतें छोड़ने के लिए तैयार होना चाहिए

कुछ महीनों पहले जब महाराष्ट्र सरकार प्लास्टिक इस्तेमाल को लेकर कड़े कानून लाई थी, तो नासिक में जहां से मैं दूध लेता हूं, उसने मुझे अपना दूध का बर्तन (डोलची) लाने को कहा। जब भी मैं नासिक में सैर पर जाता, तो डोलची साथ ले जाता और स्टोर पर रख देता और सैर खत्म करके लौटते हुए उसमें दूध ले आता। जब भी मैं पानी डालकर वो डिब्बा धोता, तो संतुष्टि मिलती कि दूध की एक भी बूंद बर्बाद नहीं की और अगर वन टाइम यूज प्लास्टिक थैली लाता, तो वैसे भी बर्बादी होती।

ये अलग बात है कि जब मैं डोलची लेकर चलता हूं, तो मेरी बेटी अजीब-सा मुंह बनाती है, पर मुझे कभी शर्म नहीं आती क्योंकि मैं बचपन में वैसी ही डोलची लेकर दुकान से खाद्य तेल लेने जाता था। पर मेरी अगली पीढ़ी ने इस तरह से स्टोर-मॉल्स में नहीं देखा और उन्हें ये असहज लगता है। पर जब मैंने उसे समझाया कि कैसे प्लास्टिक इस्तेमाल घटा सकते हैं, तो ये सुनकर उसे अच्छा लगा। तबसे मैं ऐसा स्टोर खोज रहा था, जहां शैंपू, तेल, बाथरूम साफ करने का मटेरियल, वॉशिंग लिक्विड जैसे सारे सामान तो हों, पर उसे खरीदने के लिए अपना कंटेनर लाना पड़े।

पर मुझे कहीं नहीं मिला। मेरी खोज बेंगलुरु के जेपी नगर स्थित भारत के पहले जीरो वेस्ट ऑर्गेनिक स्टोर ‘अद्रीश’ पर जाकर खत्म हुई। यहां तक कि उनकी छत समेत बाकी इंटीरियर भी डलिया में इस्तेमाल सींक से बना है और सारे उत्पाद स्टील या टीन के ढक्कन वाले कांच के जार में रखे हैं। वे परचून का सामान, फल-सब्जी, पारंपरिक किचन सामान, साफ-सफाई की चीजें, होम केयर, पर्सनल केयर, पूजा-पाठ, हस्तशिल्प, वस्त्र आदि श्रेणी में 650 से ज्यादा उत्पाद बेचते हैं। यहां सारे उत्पाद प्राकृतिक और परंपरागत तरीके से परिष्कृत हैं।

वे खेती के लिए पूरी तरह ‘देसी’ बीज बेचते हैं। नीम के तने का इस्तेमाल करके सारे उत्पाद प्राकृतिक तरीके से सुरक्षित रखते हैं और अनाज को नियमित रूप से धूप में सुखाते हैं। रोचक बात ये है कि इसे इंदौर की लड़की मनाली सराफ ने शुरू किया है, जिसने रतलाम के रहने वाले लड़के से शादी की और फिर दोनों ये स्टोर खोलने के लिए बेंगलुरु गए। मनाली कहती हैं, ‘हम भारत में जीरो वेस्ट ऑर्गेनिक जीवन शुरू करने वालों में अग्रणी हैं और हमेशा एक ऐसा स्टोर शुरू करना चाहते थे जिसमें कुछ भी प्लास्टिक ना हो।’

उन्हें ये कहने में गर्व महसूस होता है कि उनका स्टोर प्रतिदिन 20 हजार प्लास्टिक थैलियां कचरे के ढेर में जाने से बचाता है। ‘अद्रीश’ में रसोई का डिब्बा ला सकते हैं या कम से कम सामान लेना हो, तो कागज के बैग में ले सकते हैं। वे पूरे बेंगलुुरु में बिना प्लास्टिक पैकिंग के सामान पहुंचाते हैं, साथ ही ग्राहकों के घरों तक सामान रीफिल भी कराते हैं। हममें से कई लोगों ने देखा होगा कि ‘रोजमर्रा के उत्पाद’ प्लास्टिक में आते हैं, जैसे साफ सब्जियों से लेकर, बर्तन की साबुन तक, तब भी उसमें थोड़ा-सा प्लास्टिक ही दोबारा इस्तेमाल हो पाता है।

उस प्लास्टिक को रीसाइकल डिब्बे में फेंकते हुए हम सोचते हैं कि धरती बचा ली। पर यकीन करें अमेरिका तक में, जहां दुनिया का सबसे ज्यादा प्लास्टिक उपभोग हैै, वहां ऐसे प्लास्टिक का सिर्फ 8.7% ही रिसाइकल हो पाता है। प्लास्टिक वेस्ट कम करने के इच्छुक लोगों को मैं सलाह दूंगा कि एक क्षेत्र से शुरू करें, जैसे शैंपू की खाली बोतल लाएं और इन्हें रीफिल करने वाले स्टोर से भराएं।

ये बोतल सालों चल सकती है। एक समय में एक कदम उठाएं। ये रातों-रात होने वाला कोई बदलाव नहीं है। फंडा यह है कि ‘जीरो वेस्ट’ स्टोर रिटेल बिजनेस में अगला बड़ा कदम होने जा रहे हैं, अगर छोटे से योगदान से धरती बचती है, तो लोगों को अपनी कुछ सहूलियतें छोड़ने के लिए तैयार होना चाहिए।

https://www.bhaskar.com/opinion/news/n-raghuramans-column-zero-waste-stores-are-going-to-be-the-next-big-step-in-the-retail-business-people-should-be-ready-to-give-up-some-of-their-convenience-129314866.html?ref=inbound_More_News